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Mokama Data Story: 1952 से 2020 तक, मोकामा में कब कौन जीता, किन नेताओं का रहा दबदबा, पूरी कहानी

Mokama Seat Data and Analysis Story: मोकामा के चुनावों में कई बार मुकाबला बहुत ही कम वोटों से भी तय हुआ- 1977 (1,149), 1985 (2,678), 2005 (2,835) जैसे आंकड़े बताते हैं कि मोकामा में जनता का मूड एक जैसा नहीं रहा है.

Mokama Data Story: 1952 से 2020 तक, मोकामा में कब कौन जीता, किन नेताओं का रहा दबदबा, पूरी कहानी
Mokama Political History: 1952 के पहले चुनाव से 2020 के पिछले चुनाव तक कैसा रहा सियासी इतिहास?
  • बिहार की सियासत में मोकामा विधानसभा क्षेत्र एक हॉट सीट माना जाता है, ये बाहुबली नेता अनंत सिंह की सीट है
  • मोकामा में कांग्रेस का शुरुआती दौर में दबदबा रहा और बाद में जनता दल, निर्दलीय और छोटे दलों का प्रभाव बढ़ा
  • बीते 7 दशकों में चुनावों में कई बार जीत का अंतर बहुत कम रहा, जिससे मोकामा में चुनाव परिणाम अनिश्चित रहे
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बिहार चुनाव को लेकर बढ़ती सियासी सरगर्मी के बीच मोकामा में हुई एक हत्‍या ने पूरे देश का ध्‍यान खींचा है. पहले से ही 'हॉट सीट' माने जा रहे मोकामा इन दिनों खास तौर से चर्चा में है, जो कि अपने समर्थकों के बीच 'छोटे सरकार' माने जाने वाले बाहुबली नेता अनंत सिंह की सीट है. वो जदयू के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं. हालांकि फिलहाल वो चुनावी प्रचार की बजाय सलाखों के पीछे समय गुजार रहे हैं. दरअसल, जनसुराज के टिकट पर लड़ रहे प्रियदर्शी पीयूष के पक्ष में प्रचार कर रहे पूर्व राजद नेता दुलारचंद यादव की हत्‍या के आरोप में उनकी गिरफ्तारी हुई है. चुनाव आयोग के एक्‍शन के बाद इस केस में करीब 80 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं. इस केस की डिटेल से इतर हम यहां मोकामा के सियासी इतिहास पर नजर डालेंगे. 

दरअसल, मोकामा विधानसभा सीट का चुनावी इतिहास बिहार की राजनीति का एक दिलचस्प दस्तावेज है. 1952 से लेकर 2020 के चुनाव तक, यहां दो बातें सबसे अहम रही हैं- बदलती पार्टियों का दबदबा और 'दंगल' जैसे चुनावी मुकाबलों में नेताओं का व्यक्तिगत प्रभाव. 

शुरुआती दौर (1952-1972) में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व रहा, जिसमें जगदीश नारायण सिन्हा, कृष्ण शाही और कामेश्वर प्रसाद सिंह जैसे नाम लगातार शीर्ष पर रहे. 1972 में कांग्रेस ने 28,397 वोटों के बड़े अंतर से जीत दर्ज की, जो उस समय सामाजिक और राष्ट्रीय झुकाव की झलक थी.

फिर दिखा बदलाव, निर्दलीय का भी दबदबा 

इसके बाद 1977 और 1980 के चुनाव में बदलाव के संकेत दिखाई दिए, जब जनता पार्टी, सीपीआई जैसे दलों के उम्मीदवारों ने कांटे की टक्कर दी. 1977 में कांग्रेस मात्र 1,149 वोटों से जीत पाई, वही 1980 में श्याम सुंदर सिंह (कांग्रेस) सिर्फ 5,290 वोटों के अंतर से विजयी हुए. 1985-2000 के बीच कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवारों के बीच मुकाबला ट्विस्ट वाला रहा. मोकामा में श्याम सुंदर सिंह और दिलीप कुमार सिंह जैसे नाम कई बार सामने आए.

1990 में जनता दल और कांग्रेस का सीधा मुकाबला हुआ, जिसमें दिलीप कुमार सिंह (जनता दल) ने 22,106 वोटों के अच्छे अंतर से जीत पाई. वहीं 2000-2010 का समय निर्दलीय और छोटे दलों का युग रहा- सूरजभान सिंह, अनंत कुमार सिंह, सोनम देवी का प्रभाव रहा. 

एक मजेदार पहलू है कि चुनावों में कई बार मुकाबला बहुत ही कम वोटों से भी तय हुआ- 1977 (1,149), 1985 (2,678), 2005 (2,835) जैसे आंकड़े बताते हैं कि मोकामा में जनता का मूड एक जैसा नहीं रहा है.

...और फिर आया बाहुबली अनंत सिंह का दौर 

अनंत कुमार सिंह की कहानी खास है. 2005 से लेकर 2020 तक वे कभी जदयू, कभी निर्दलीय और फिर 2020 में राजद के बैनर तले मोकामा के क्षेत्र में छाए रहे. उनके प्रतिद्वंदी नलिनी रंजन शर्मा, सोनम देवी व अन्य लगातार मैदान में थे, लेकिन अनंत कुमार सिंह ने व्यक्तिगत दबदबे से एक रेखा खींची. 2020 में अनंत कुमार सिंह (राजद) ने राजीव लोचन नारायण सिंह को 35,757 वोटों के अंतर से हराया और सियासी समीकरण पूरी तरह बदल दिया. 

मोकामा विधानसभा क्षेत्र में समय के साथ राजनीतिक पार्टी भी बदली, लेकिन कई चुनावों में कैंडिडेट का व्यक्तिगत दबदबा भी पार्टी के सापेक्ष ज्यादा भारी रहा. यहां सत्ता के समीकरण की कहानी सिर्फ पार्टी की नहीं, 'नेता' की भी रही है.

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