आखिर बिहार BJP चाचा पारस से बेहतर चिराग को अपना राजनीतिक सहयोगी क्यों मानती है?

बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने जब पार्टी के दलित विधायकों से इस मुद्दे पर रायशुमारी की तो उनका कहना था कि दलित और ख़ासकर पासवान समाज का वोटर चिराग के साथ रहेगा.

आखिर बिहार BJP चाचा पारस से बेहतर चिराग को अपना राजनीतिक सहयोगी क्यों मानती है?

लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) में टूट को लेकर बिहार भाजपा खुश नहीं (फाइल फोटो)

खास बातें

  • लोजपा में टूट को लेकर बिहार बीजेपी खुश नहीं
  • पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने नेतृत्व को भेजा फीडबैक
  • क्यों चिराग को ज्यादा अच्छा राजनीतिक सहयोगी मानती है बिहार BJP
पटना:

लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को लेकर बिहार भाजपा खुश नहीं है. बृहस्पतिवार को अपने गुट का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने पर पशुपति कुमार पारस ने ऐलान किया कि केंद्रीय मंत्री बनने के बाद वो संसदीय दल के नेता का पद छोड़ देंगे. उनके इस घोषणा से इस बात की और पुष्टि हुई कि चिराग पासवान (Chirag Paswan) के खिलाफ जो बग़ावत उन्होंने किया और पार्टी पर कब्जा जमाने की कोशिश की, उस अभियान में उनको ना केवल नीतीश कुमार बल्कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का आशीर्वाद प्राप्त हैं. जिसकी पहली झलक उस समय देखने को मिली जब रविवार के दिन लोकसभा अध्यक्ष पारस के नेतृत्व में सांसदों से मिले और बिना चिराग का पक्ष सुने उस गुट को मान्यता भी दे दी.

हालांकि, इस बीच बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने जब पार्टी के दलित विधायकों से इस मुद्दे पर रायशुमारी की तो उनका कहना था कि दलित और ख़ासकर पासवान समाज का वोटर चिराग के साथ रहेगा. कुछ विधायकों का कहना था कि चिराग के खिलाफ नीतीश कुमार के मार्गदर्शन में जो मुहिम चल रही है उससे जो वोटर बिखरे या नाराज़ भी हैं उसको चिराग़ के लिए सहानुभूति हो गयी हैं. 

भाजपा के नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व को यह भी फीडबैक दिया है कि पारस को मंत्री बनाने से और चिराग को अलग थलग करने से जो पासवान वोटर 2014 के लोकसभा चुनाव से भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन में हर चुनाव में वोट करता आया है, उस वर्ग के वोटों का नुक़सान उठाना पड़ सकता है. इस विचार विमर्श में सबने एक राय दी है कि पारस कभी जन नेता नहीं बल्कि बैकरूम में रहकर चुनाव प्रबंधन करते आए हैं. उनका स्वास्थ्य भी ऐसा नहीं है कि जिससे भरोसा किया जा सके कि सक्रिय होकर अपने जाति के वोटर को गोलबंद कर सके.

बिहार में भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधान पार्षद संजय पासवान, जो खुद भी इसी जाति से आते हैं उनका कहना है कि पार्टी को चिराग़ और पारस के इस पचड़े से अलग रहना चाहिए और 'ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर' के सिद्धांत पर चलना चाहिए. उनके अनुसार पार्टी को इस पचड़े से अलग रहना चाहिए क्योंकि जो जमीनी वोटर है वो चिराग के साथ मज़बूती से खड़ा है ऐसे में पार्टी के लिए व्यक्ति से अधिक वोट महत्व रखना चाहिए. पासवान ने कहा कि जो चिराग या रामबिलास पासवान के जाति का वोटर है वो सामाजिक स्तर पर यादव के साथ और पार्टी के स्तर पर जनता दल यूनाइटेड से परहेज़ रखता है. 

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दलित समाज के अधिकांश भाजपा नेताओं ने अपनी राय में यह भी कहा हैं कि चिराग अगर तेजस्वी के साथ भाजपा के 'पारस प्रेम' के कारण गये तो हर स्तर पर मतलब लोकसभा से विधानसभा चुनाव में इसका प्रतिकूल असर देखने को मिलेगा. इस फीडबैक के बारे में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को तो अवगत करा दिया गया है, लेकिन उनका मानना है कि अंतिम फैसला आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को लेना है. 

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